भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्कूल जाते हुए / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


स्कूल जाते हुए
सुबह
साथ - साथ
देखती हूँ
सिन्दूरी फुटबाँलनुमा सूरज को
फुदक फुदक कर
आसमान की सीढि़याँ चढ़ते
ज्ी चाहता है
उसकी नन्ही बाँहें थाम
यकबयक चढ़ा दूँ उसे
सीढ़ी की पहली पायदान पर
ठीक वैसे ही
जैसे पलक झपकते
तुम
रोड क्रास करते हो