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स्कूल / सरोज कुमार

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किसी ने भर्ती के लिए
दरखास्त नहीं दी!
बस, स्कूल में
की-किसी दिन अलग-अलग
स्वंय को भर्ती पाया।

यह कभी साफ नहीं हो सका
किसी स्कूल विद्यार्थियों के लिए
बनाया गया था
या बना बनाया स्कूल पाकर
विद्यार्थियों की भर्ती का सिलसिला
शुरू हो गया!

स्कूल में
किस्म-किस्म के विषय थे।
हट विषय का मास्टर
आत्म नियुक्त था!
सारे मास्टर
अपने-अपने ईश्वर को
अपना हेड मास्टर मानते थे!
इसलिए हर मास्टर का
अपना-अपना हेड मास्टर था!

चूंकि कई हेड मास्टर थे
इसलिए
कोई एक हेडमास्टर नहीं था!
किसी किसिम का
कोई हेड मास्टर
कभी राउंड पर नहीं आया!

विद्यार्थी
स्कूल की प्रयोगशाला में
पाठयक्रम के अनुसार
एक दूसरे पर
निरन्तर प्रयोग करते हुए
पुराने नतीजों को
और, और
तस्दीक किया करते थे!

सरल से सरल
और कठिन से कठिन
समूचा कोर्स
अनन्त और आकर्षक था!
स्कूल कोई छोड़ना

नहीं चाहता था!
निकाल जरूर दिया जाता था
किसी को भी, कभी भी!
बिना कोई कारण बताए !
निकाले गयों को
कहते हैं
वहीं भेज दिया जाता था
जहाँ से वे आए थे!

वे कहाँ से आए थे
आज तक
किसी को
मालूम नहीं हो सका