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स्टिल-बाॅर्न बेबी / सुशान्त सुप्रिय

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वह जैसे
रात के आईने में
हल्का-सा चमक कर
हमेशा के लिए बुझ गया
एक जुगनू थी

वह जैसे
सूरज के चेहरे से
लिपटी हुई
धुँध थी

वह जैसे
उँगलियों के बीच में से
फिसल कर झरती हुई रेत थी

वह जैसे
सितारों को थामने वाली
आकाश-गंगा थी

वह जैसे
ख़ज़ाने से लदा हुआ
एक डूब गया
समुद्री-जहाज़ थी
जिसकी चाहत में
समुद्री-डाकू
पागल हो जाते थे

वह जैसे
कीचड़ में मुरझा गया
अधखिला नीला कमल थी...