स्टूल / सरबजीत गरचा / वर्जेश सोलंकी
लकड़ी के जिस स्टूल पर बैठकर आज तक कविता लिखता आया
उसी के आज पाये निकल गए।
बाबा ने कहा : तेरे जनम के बाद ही ख़रीदा था
इसका मतलब स्टूल और मैं समकालीन।
स्टूल फिर बढ़ई से रिपेयर करवा लिया जाए या
तोड़कर चूल्हे में डाल दिया जाए या
हाल ही में बाज़ार में आया नया फ़र्नीचर ख़रीद लिया जाए
इस तरह के फ़ालतू विचारों में ही कुछ दिन निकल गए
आजकल कविता में भी पहले जैसा धार नहीं आती
लिखना-पढऩा टाला जाए
घर के खिड़की-दरवाज़े बन्द करके
अन्धेरे के आलम में सुस्त होकर पड़ा रहा जाए
ऐसा भी कितने ही दिनों तक लगता रहा
स्टूल खड़ा नहीं रह सकता था
पायों के आधार के बिना
मैं भी
जी नहीं सकता था
शब्दों के बिना... इंसानों के बिना...
यह समझ में आते ही
हथौड़ी और कीलें लेकर
मुझसे जैसे बन पड़े वैसे
उखड़ा हुआ एक-एक पाया जोडऩे लगा हूँ।
मूल मराठी से अनुवाद : सरबजीत गर्चा