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स्टेज / वाहरू सोनवाने / नितिन पाटील

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हम मँच पर गए ही नहीं,
और हमें
बुलाया भी नहीं गया,

उँगली के इशारे से
हमारी जगह
हमें दिखाई गई
हम वहीं बैठे रहे
हमें मिली शाबासी !

और वे
स्टेज पर खड़े हो
हमारा दुःख-दर्द,
हम पर हो रहे अत्याचार
और हमारे शोषण
को बताते चिल्लाते रहे —

ऐ आदिवासी भाईयो !
अब दुःख-दर्द मत सहो ।

हमारा दुख-दर्द
हमारा ही रहा,
कभी उन सत्ताधारियों का
नहीं बना

हमारी शँकाएँ,
हमने बड़बड़ाईं
कान लगाकर सुनते रहे,
हमारा दर्द हमें ही

सुनाते-सुनाते चीख़ रहे हैं
पर कहीं
उनके भाषण में सुधार की कोई आशा नहीं

और निःश्वास छोड़ा तथा हमारे कान
पकड़ कर धमकाया
माफ़ी मांगो नहीं तो…?

तुम जंगल में
क्यों बसे हो ?
तुम्हें बेदखल किया जाएगा ।

तुमने गुनाह किया है !
उसकी
कड़ी सज़ा मिलेगी,

यह बात हमसे
पालतू तीतर ने कही
जो सत्ता के पिंजरे में क़ैद है !

मूल मराठी से अनुवाद : नितिन पाटील