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स्टेशन पर रात / चंद्रभूषण

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रात नहीं नींद नहीं सपने भी नहीं

न जाने कब ख़त्म हुआ इन्तजार

ठण्डी बेंच पर बैठे अकेले यात्री के लिए एक सूचना

महोदय जिस ट्रेन का इन्तजार आप कर रहे हैं

वह रास्ता बदलकर कहीँ और जा चुकी है


हो जाता है, कभी-कभी ऐसा हो जाता है श्रीमान

तकलीफ की तो इसमे कोई बात नहीं

यहाँ तो ऐसा भी होता है कि

घंटों-घंटों राह देखने के बाद

आंख लग जाती है ठीक उसी वक्त

जब ट्रेन स्टेशन पर पहुँचने वाली होती है


सीटी की डूबती आवाज के साथ

एक अदभुत झरने का स्वप्न टूटता है

और आप गाड़ी का आखरी डिब्बा

सिग्नल पार करते देखते हैं


सोच कर देखिए ज़रा

ज्यादा दुखदायी यह रतजगा है

या कई रात जगाने वाली पांच मिनट की वह नींद


और वह भी छोड़िये

इसका क्या करें कि ट्रेनें ही ट्रेनें, वक्त ही वक़्त

मगर न जाने को कोई जगह है ना रुकने की कोई वज़ह


ठण्डी बेंच पर बैठे अकेले यात्री के लिए एक सूचना

ट्रेनें इस तरफ या तो आती नहीं, या आती भी हैं तो

करीब से पटरी बदलकर कहीं और चली जाती हैं


या आप का इन्तज़ार वे ठीक तब करती हैं

जब आप नींद में होते हैं

या सिर्फ इतना कि आपके लिए वे बनी नहीं होतीं

फ़कत उनका रास्ता

आपके रास्ते को काटता हुआ गुज़र रहा होता है