भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्तुति निन्दा, पूजा-घृणा, मधुर मान-अपमान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग विहाग)
स्तुति निन्दा, पूजा-घृणा, मधुर मान-अपमान।
रोग और नीरोगता, जीवन-मरण समान॥
सब ही प्रभु हैं, भरे हैं सबमें नित भगवान।
खेल विविध विधि कर रहे, रच बहु भाव-विधान॥