स्त्रियाँ / शैलजा पाठक
स्त्रियाँ का कोई वर्ग नही होता
धर्म नही जात नही होता
सब मिलकर बस वो स्त्री होती है
कुछ प्रकार होते है
कुछ ऐसी जिनकी चमचमाती
गाड़ियों के पीछे काले शीशे होते हैं
उनके तलवे नर्म मुलायम होते हैं
उनके नीचे जमीं नही होती
वो लड़खड़ाती चलती हैं
कुछ ऐसी जो गाली खाती है
मार खाती है और अपने आप को
अपने बच्चों के लिए बचाती है
एक ऐसी जो अपने को दाव पर लगा कर
पति के सपनों को पंख देती है
और एक ऐसी जो सपने नही देखती
एक वो जो जलती भुनती अपने
मुस्कराहट को सामान्य बनाए रखती है
कुछ स्त्रियाँ मरी हुई एक देह होती हैं
मशीनी दिनचर्या की धुरी पर
घुरघुराती काम निपटाती
ये सभी प्रकार की स्त्रियाँ
मरती हैं एक सी मौत
जब इनका सौदा किया जाता है
जब इन्हें रौदा जाता है
जब इनके गर्भ में इन्हीं का कतल होता है
इनके आसुओं का रंग लाल होता है
दर्द के थक्के जमे होते है इनकी देह में...