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स्त्रियां / सरस्वती रमेश
Kavita Kosh से
सारी नदियाँ स्त्रियाँ होती हैं
छाती फैलाकर
नाव को खेने का रास्ता
नदियाँ देती हैं और
नाव को पार लगाने का श्रेय मांझी ले जाता है।
वहाँ एक स्त्री
गोद में बच्चा टांगे
सिर पर टोकरी रखे चली जा रही है
वर्षों से स्त्रियाँ अपने सिर पर पृथ्वी रख चल रही हैं
ये स्त्रियाँ अबलाएँ कब बनी थीं।
स्त्रियाँ मछलियाँ होती हैं
हाथ लगाओ तो डर जाती हैं
बाहर निकालो तो मर जाती हैं
कुछ मछलियाँ तितलियाँ बन आसमान में उड़ रही हैं
ये मछलियाँ तितलियाँ कब बन गईं।