स्त्रियों के नाम सावधानी के कई परतें / विपिन चौधरी
कुछ धनी प्रक्रियाओं में शामिल आवाजों से
उनका घनत्व और भी बढ़ जाता है
घनत्व के इसी भार के भीतर नहाती हैं
हमारी ग्रामीण औरते
खाट या चादर की ओट में
तो कभी दुपट्टे की छत्र-छाया तले
नहाने का साबुन ना होने पर
बिना किसी हो हल्ले के
कपडे धोने की टिकिया से भी उनका काम चल जाता है
नाहन पटरी पर कमर को धनुष बना
वे व्यस्त हो जाती है केवल अपने लिए
पत्थर की रगड से जब उनकी एडियाँ उजली हो रही होती हैं
तो उस पल
समूचा सोंदर्य-शास्त्र उनके नाजुक क़दमों
तले पनाह मांगता दिखता है
रसोईघर का एक शांत कोना
पुरुष नाम का प्राणी के घर से प्रस्थान करने के बाद
काम काज निपटा कर
वे रसोई के एक कोने को नाहनघर में तब्दील कर देती हैं
पूरी तरह निवस्त्र औरत
नहाते हुए भी चौकनी रहती है
कि सुई की नोक बराबर भी देह का कोना
उजागर ना हो जाये
खेल-खेल में उसके करीब आई गेंद को
अपने छः साल के गोनू की तरफ फेंक कर कहती है
बेटा इधर ना देख्यो
नाहते समय संसार की हर स्त्री उतनी सुन्दर होती है
जितना सुंदर एक स्त्री को होना चाहिये
केलि क्रीडाएं करती रीतिकालीन नायिकाएं
खंडर महलों के बड़े-बड़े कुंड में रानियों की जीवित याद को देख
गांव की वे स्त्रियों याद आती हैं
जो एक बाल्टी पानी में नाहने का सोंधा काम करती है
अधजली लकडियों की गंधशुदा पानी
उनके देह से मिल कर अपनी पुरानी गंध खो बैठता है
कोई स्त्री नाहते-नाहते स्त्री सोचने लगती है
कहीं इस वक्त खुदा की आँख तो खुली ना रह गयी हो
यह सोच
पानी का डब्बा उसके सिर से कुछ ऊपर थम सा जाता है
फिर कुछ सोच औरत खुद ही शर्माती है
‘धत’
भोर होते ही
गुडुप गुडुप और छन-छन की आवाजें
बांध लेती है कुएं की मुंडेर का गोल दायरा
गांव की पुरानी बहुयों चुपचाप नहा कर
आ जाती है अपनी चौखट पर
नई बहुए सुबह कुए पर नहीं नहाती
कुछ वर्षों के बाद ही वे अपनी सास और ददिया सास
का अनुकरण कर कुएं पर स्नान का लुत्फ़ उठाएंगी
तब तक वे सावधानी की कई परतों को अपने
पल्लू से बाँध चुकी होंगी
और वे भी खुले में नाहते हुए सावधान रहेंगी
जब तक एक भी औरत भोर के अंधेरे में
कुए की मुंडेर पर स्नान का सहज आनंद उठा लेती है
तब तक दुनिया पर भरोसा रखा जा सकता है