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स्त्रियों के पास दुख के अनेक पाठ हैं / महेश आलोक

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स्त्रियों के पास दुख के अनेक पाठ हैं

पाठ में चालाक पुरोहित है और नदियाँ नक्षत्र आकाश चिड़िया
आग मछली इत्यादि कुछ नहीं है।स्त्रियाँ अगर इस तथ्य से
चकित नहीं हैं तो इसमें चिड़िया आग मछली इत्यादि का
कोई कसूर नहीं है इस पर लगभग सभी सहमत हैं

इस पर भी लगभग सभी सहमत हैं कि दुख के वास्तविक
पाठ पर वास्तविक विमर्श स्त्रियाँ शुरु नहीं करेंगी।हो सकता है
ईश्वर शुरु करे।उसकी सराय में रहने वाले पुरोहित शुरु करें
वह अँगूठी शुरु करे जो किसी मछली के पेट में जाते-जाते
बच गयी है

किसी दूसरे ग्रह की दूसरी स्त्रियाँ अगर इस विमर्श में साझीदार हैं
तो उनकी आँख कान नाक टखने इत्यादि हमारी स्त्रियों जैसे नहीं
होने चाहिये इतना लगभग तय है। वहाँ पाठ का दुख है सँताप है
वहाँ सड़कों और सपनों और स्मृतियों का वजन पलकों से उठाने का
रिवाज नहीं है। ह्रदय के पास बैठे चन्द्रमा को झुककर देखने और
उसके दाग को भी अद्भुत मानने वाली संस्कृति के बारे में तो
सोचना ही निरर्थक है

स्त्रियाँ अपनी पीठ अच्छी तरह पहचानती हैं
वहाँ दुख के अनेक पाठ हैं और अनेक पाठ
उत्तर-पाठ नहीं हैं