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स्त्रियों ने बचाए हैं / नरेश गुर्जर
Kavita Kosh से
स्त्रियों ने बचाए हैं
रसोई के किसी डब्बे में कुछ पैसे
आड़े वक्त की रसोई के लिए
आंगन में तुलसी बचाई है
पीपल बचाए हैं
चौक चबूतरे पर
स्त्रियों ने बचाया है
दरवाजों के किवाड़ों को
छत की दीवारों को
दीवारों में खिडकियों को
घर में घर
रिश्तों में रिश्ते
और पुरुष में पुरुष को
स्त्रियों ने बचाया है
प्रश्नों का पानी बचाया है
मौन के बांध बनाकर
स्त्रियों ने
कभी कभी
प्रेम न कर के भी
प्रेम को बचाया है
स्त्रियों ने।