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स्त्रीविहीन रेल का डिब्बा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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क्या स्त्रियों ने बन्द कर दीं हैं यात्राएँ?

बाप रे, इतना लम्बा डिब्बा
और इतना मनहूस?

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं में
या विज्ञापनों में

कोठों पर
तन्दूरों में
या शमशानों में?

कैसे पहुँचेगी यह गाड़ी सही-सलामत
स्त्री के बिना?