स्त्री-कविता री साख / प्रेमचंद गांधी
आपणी भासा मांय स्त्री-कवि रो पैलो नांव ई मीरा बाई रो आवै, अर इणी नांव सूं राजस्थानी मांय लुगायां री कविताई री ओळख बाजै। आगै बधां सहजो बाई अर दया बाई पण सांम्ही आवै। पछै कोई तीन सईकां तांई कविता रै आंगणै कदै-कदास ई कोई लुगाई री ओळख कवि रूप दीसै। इण मांय कोई संका कोनी कै भासा कोई होवै, लोकगीतां मांय गूंथ’र लुगायां आपरी पीड़ अर भावां नै हजारूं बरसां सूं परगट करती आवै। आज आधुनिक राजस्थानी कविता इणी लूंठी विरासत नै ई लेय’र आगै बधती अर आपरी लीक बणावती दीसै। लारली तीन बीसी मांय विगसाव रा केई-केई रंग देख सकां। बानगी सारू राजस्थानी कविता जातरा मांय ओ नवो अर लूंठो संग्रै नीरज दइया घणी मेहनत अर लगन सूं तैयार कर्यो है।
इण संग्रै री खास पिछाण तो आ है कै अठै वरिष्ठ अर कनिष्ठ रो कोई भेद संपादक नीं राख्यो अर इकचाळीस सिमरथ स्त्री-कवियां रो संचै कर्यो, बीं सूं लुगायां री आधुनिक राजस्थानी कविता रो अेक सांगोपांग रूप सांम्ही आवै। इण संग्रै री कवितावां मांय राजस्थानी समाज, संस्कृ ति अर जूण रा चितराम ई नीं मिलै, लगोलग बाळपणै सूं लेयनै मा-दादी रा बखत तकात जित्ता पण दुख-दरद-पीड़-हरख-उच्छब रा रंग हुया करै, सगळा नै आज री राजस्थानी लुगायां पूरै दमखम सूं सबदां बखाणै। अठै कविता अतीत, रीत, कु रीत, कु दरत आद री ओळ्यूं पण आवै अर इक्कीसवीं सदी री लुगाई रा सुपना-आस-बिस्वास-घर-परिवार रै लारै खेत-रोही-ढोर-डांगर-पंछी-पाणी री चिंतावां नै ई नीं बिसरावै।
आज री लुगाई आपरी जूण में जियां चावै, उण नै कविता रै सबदां कैवै, जियां- शकुंतला शर्मा मांडै, 'कीरत कोनी चाइजै/ बस जे देय सको तो देवो/ चिमठी’क सम्मान।’ घर-बारै इण सम्मान नै बचावण खातर लुगाई कांई कर सकै, आ बात संतोष चौधरी बतावै, 'इण रो नांव लुगाई है/ जिकी हरेक पीड़ नै/ पल्लै री गांठ बांध’र लुकोय लेवै।’ फेरू लुगाई री जूण में इतरा दुखां रा कूंडा जंजाळ दीसै कै सपना वर्मा आपणी कविता में बखाणै, 'हरेक लुगाई/ जकी जीवती दीसै/ बा जीवती कोनी हुवै।’ इण सूं बेसी भळै किण भांत साच नै कोई मांड सकै। आज री कविता मांडती लुगायां जाणै कै आपरै अगम नै संवारण खातर कविता मांडी जावै, इणी’ज वजै सूं शारदा कृष्ण कैवै, 'जीवतां री आसीस हुवै कविता/ गयां रो श्राद्ध नीं।’ सांची बात आ है कै आगै आवणआळी पीढ्यां नै जीवता रैवण री आसीस देवती अैड़ी कवितावां सूं इण संग्रै अर स्त्री-कविता री साख बणावैै।
प्रेमचंद गांधी