भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्त्री और पंछी / नीलेश रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्त्री पंछी को अपनी हथेली में लिए खड़ी है
लेकिन
पक्षी की आँखों में जकड़न नहीं
न मुक्त होने की आकांक्षा से उपजी ख़ुशी
ये सब तो स्त्री की आँखों में है
पंछी तो बस उड़ने से पहले एकटक स्त्री को निहार रहा है
क्या कहना चाह रहा है वो
यही तो अबोला और अनचीन्हा है

गुरुवार, 5 मई 2007, भोपाल