स्त्री का देह होना कठिन है / अनुभूति गुप्ता

बरसों से-
स्त्री का
देह होना कठिन है
जन्म लेने से
मृत्यु होने तक।
अनेक बन्धनों में
बँधे रहना
बिना उफ्फ किये, कठिन है।
विवाह होने से
पत्नि-धर्म निभाने तक।
पति की सेवा करना,
परिवार की
मान मर्यादा निरन्तर
बनाये रखना, कठिन है।
गर्भ-धारण करने से
प्रसव-पीडा की
असहनीय अवस्था तक।
पूरे नौ महीने,
कोख में पल रहे
शिशु के स्वस्थ रहने की
दिन-रात कामना करना, कठिन है।
शिशु के जन्म से
लालन-पालन तक।
घर के साथ-साथ
शिशु के प्रति हर कर्तव्य को
बखूबी निभाना, कठिन है।
बेटे के बड़े होने से
उसकी शादी करने तक।
बेटे के बाप
बनने के बाद,
दादी के रूप में
पोते-पोती पर
ममता निछावर करना, कठिन है।
बालों मे सफेदी लाये
बुढ़ापे से
    अन्तिम क्षणों तक।
बूढ़े हो जाने पर
पति के साथ
मृत्यु तक की
यात्रा तय करना, कठिन है।
सच में,
स्त्री का देह होना
   हर परिभाषा में कठिन है।

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