स्त्री की चाँद कामना / रंजना जायसवाल
चाँद पहुँच जाने वालों को भी
नहीं भाता
स्त्री का चाँद चाहना
वे चाहते हैं
आज भी चाँद पूजे स्त्री
उनकी लंबी उम्र के लिए
रहे भ्रम में
कि ईश्वर है चाँद
स्त्री का चाँद चाहना
खतरा है
परम्पराओं
रीतियों
और उन नियमों के लिए
जिनके निर्माता हैं वे खुद ही
स्त्री के भ्रम पर
कायम है उनका सुख
और अस्तित्व
इसलिए वे चाँद कह देते हैं स्त्री को
जानते हैं
चाँद कुछ नहीं सूरज के बिना
और वे तो खैर सूरज हैं ही
नहीं जानते वे
वह स्त्री ही है जिसने भरा है
नीरस चाँद में अमृत
दो-दो माँ दिया है बच्चों को
और चरखा काटती बुढिया भी
नहीं जानते वे कि
स्त्री जानती है
पुलिंग है चाँद
और उसका दाग
कामुकता का
अमित स्याह साक्ष्य
और यह भी कि
चाँद चाहना एक मुहावरा है
दरअसल उनकी परेशानी
स्त्री की महत्वाकांक्षा को लेकर है
जो बढ़ रही है दिनों-दिन तेजी से
उनकी बनाई हदों को तोड़ती
नदी का बाँध तोड़ना
खतरे की निशानी है
तबाह हो सकती है जिससे
कमजोर पुरानी दुनिया
पर क्या पुराना टूटे बिना
बन पाएगी नयी दुनिया।