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स्त्री की व्यक्तिगत भाषा / मंजुला बिष्ट

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स्त्री ने जब अपनी भाषा चुनी
तब कुछ आपत्तियाँ दर्ज़ हुई

 पहली आपत्ति दहलीज़ को थी
अब उसे एक नियत समय के बाद भी जागना था

दूसरी आपत्ति मुख्य-द्वार को थी
उसे अब गाहे-बगाहे खटकाये जाने पर लोकलाज का भय था

तीसरी पुरज़ोर आपत्ति माँ हव्वा को थी
अब उसकी नज़रें पहले सी स्वस्थ न रहीं थीं

चौथी आपत्ति आस-पड़ोस को थी
वे अपनी बेटियों के पर निकलने के अंदेशें से शर्मिंदा थे

पाँचवीं आपत्ति उन कविताओं को थी
जिनके भीतर स्त्री
मात्र मांसल-वस्तु बनाकर धर दी गई थी

स्वयं भाषावली भी उधेड़बुन में थी
कि कहीं इतिहासकार उसे स्त्री को बरगलाने का दोषी न ठहरा दें

तब से गली-मुहल्ला,आँगन व पंचायतों के निजी एकांत
अनवरत विरोध में है कि
स्त्री को अथाह प्रेम और चल-अचल सम्पति दे देनी थी

लेकिन उसकी व्यक्तिगत-भाषा नहीं!