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स्त्री को देखना / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
दूर से दिखता है पेड़
पत्तियाँ नहीं, फल नहीं
पास से दिखती हैं डालें
धूल से नहाई, सँवरी ।
एक स्त्री नहीं दिखती कहीं से
न दूर से, न पास से ।
उसे चिता में
जलाकर देखो
दिखेगी तब भी नहीं ।
स्त्री को देखना उतना आसान नहीं
जितना तारे देखना या
पिंजरा देखना ।