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स्त्री होना / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
अभिशाप नहीं हैस्त्री होना
स्त्रियों की उड़ान होती है
दृढ़, ऊँची, सपनों-सी सतरंगी
वह उड़ सकती है बचपन में
छोटे भाई को गोद में लेकर
सपने दिखाती सुखद लोक की ओर
वह पूर्वजों की अनमोल धरोहर से
सृजित कर सकती है स्वर्णिम इतिहास
स्त्री होना अभिशाप नहीं है
उसके पंख उसे ले जाते हैं ग्रहों और नक्षत्रों तक
दृश्टि भेदती है धरती का अन्तःस्थल
निकाल लाती है खनिज-रत्न उसके गर्भ से
सजाती है भविश्य...
अलंकृत करती है नवीन पीढियाँ
गढ़ती है इतिहास...
स्त्री के बिना घर
दीवारों से घिरा भूखण्ड है
संवेदनहींन... सारहीन...
स्त्री होना अभिशाप नहीं है
इच्छाओं के पंखों पर उड़ कर
बाँध सकती है वह
अश्वमेध का अश्व सूर्य तक
स्त्री सम्पूर्ण है...