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स्त्री / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
Kavita Kosh से
मछलियाँ
आँसू पीती हैं
फिर भी सागर का
खारापन कम नहीं होता
अनंतकाल से
मछुआरे
वंशी डाले बैठे हैं
कालातीत समय से
मछुआरे
जाल लिए फिरते हैं
विरह में फिर भी
मछलियाँ आँसू पीती हैं।