भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्थगित जीवन / घनश्याम कुमार 'देवांश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँसों में चढ़ता उतरता है पल पल
महज़ एक शून्य,
कदम लड़खड़ाते घिसटते चलते हैं
बाढ़ में डूबे एक अदृश्य पथ पर,
लगता है
कि जैसे किसी असावधान पल में
आकाश का विराट अकेलापन ही पी गए,
और पता नहीं क्यों,
एक अच्छे जीवन की चाह में
इतना लम्बा स्थगित जीवन जी गए..