भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्थिति / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समेटे सिमटता नहीं

बिखराव !

नहीं है दिशा का पता

भटकाव !

जटिल से जटिलतर हुआ

उलझाव !

हुआ कम न, बढ़ता गया

अलगाव !