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स्थिर चित्त / मन्त्रेश्वर झा
Kavita Kosh से
दीप मे की जरैत छैक
डिबिया कि तेल
कि बाती?
क्यो जरओ, किछु जरओ
जरओ कि मंरओ
ककर फटैत छैक छाती
मुदा प्रकाश लेल
किछु ने किछु तऽ जरिते छैक
ककरो ने ककरो तऽ मरय
पड़िते छैक।
हँ, जरैत छैक अवश्ये बाती
से तऽ बुझैत अछि सभ क्यो
प्रकाश मे नहाइत अछि अन्हारो
मुदा डिबिया!
चुपचाप तपैत रहैत अछि
तपैत रहैत अछि
बनैत केवल निमित्त
स्थिर-चित्त।