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स्नेह जल / मदन गोपाल लढ़ा

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झुलसा हूँ
सूर्यनारायण की
तीक्ष्ण निगाहों से
भटका हूँ
आग उगलती लू में।

मैं मरूपुत्र
मरूभौम की
रेत का कण हूँ
माँ !
बरसा दो
स्नेह-जल