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स्नेह मेरे पास है / त्रिलोचन

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स्नेह मेरे पास है, लो स्नेह मुझसे लो


चल अँधेरे में न जीवन दीप ठुकराओ

साँस के संचित फलों को यों न बिखराओ

पत्थरों से बंधु अपना सिर न टकराओ

मेघमेला विश्व है लो राग मुझसे लो


यह मरुस्थल है, कहाँ जल है पथिक प्यासे

दृष्टि-भ्रम है, मौन मृगजल है, थके तासे

शक्ति खो मत दो भटक कर व्यर्थ आशा से

भूमि में जल है, उठो, लो शक्ति मुझसे लो


तुम तिमिर-रंजित नयन से देख क्या पाए

बंधु भी यमदूत बन कर आँख में आए

कहो, कब तक रहोगे, उद्भ्रांत, अलगाए

प्राण का अवलम्ब लो विश्वास मुझ से लो


(रचना-काल - 1-08-49)