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स्नेह / अशोक शुभदर्शी

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एक दिन
देनें छेलै हुनी
एगोॅ किताब

हुनी देनें छेलै हमरा किताब
खूबे स्नेह सें
संवारै लेॅ हमरोॅ आपनोॅ भविश्य

आबेॅ हमरोॅ भविश्य छै
स्नेह सें भरलोॅ ई किताब ।