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स्पर्श / आशुतोष दुबे
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					मेरे आसपास का संसार 
आविष्ट है 
एक छुअन की स्मृति से
आकाश में से थोड़ा 
आकाश लेता हूँ
पृथ्वी में से लेता हूँ 
थोड़ी सी पृथ्वी
एक आवाज़ की
ओस भीगी उंगलियों से 
छुआ गया हूँ
एक दृष्टि की कहन में 
जैसे घोर वन में 
घिरा हुआ 
रास्ता ढूँढता हूँ
असमाप्त स्पन्दनों की
लगतार लय में 
बह निकलने के पहले 
सितार के तारों में 
उत्सुक प्रतीक्षा का तनाव है
थोड़े से आकाश में उड़ता हूँ 
थोड़ी सी पृथ्वी पर रहता हूँ
उसकी देह में रखे हैं मेरे पंख 
मेरी देह उसके स्पर्श का घर है.
	
	