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स्पर्श / सजीव सारथी
Kavita Kosh से
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे,
संवेदना की आख़िरी परत तक,
जिसकी पहुँच हो.
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे,
जिसकी निर्मल चेतना.
घेरे मन और मगज़ हो.
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे,
जिसकी मीठी वेदना,
अंतर्मन की समझ हो.
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे,
जिसके पार तुम्हें देखना,
मेरे लिए सहज़ हो.
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे,
जिसकी अनुभूती के लिए.
उम्र भी एक महज़ हो.
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे,
जिसमें सूर्य सी उष्मा हो
जिसमें चांद सी शीतलता
जिसमें ध्यान की आभा हो
जिसमें प्रेम की कोमलता
जिसमें लोच हो डाली सी
जिसमें रेत हो खाली सी
जिसमें धूप हो धुंधली सी
जिसमें छाँव हो उजली सी
जो तन मन को दे उमंग नयी
जो यौवन को दे तरंग नयी
जो उत्सव बना दे जीवन को
जो करूणा से भर दे इस मन को
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे....