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स्पष्टीकरण / मोहन अम्बर

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ऐसे गीत लिखे तो क्या गलती करी?
ऐसी रात मिली है मुझको पाँथ पर।
अंधियारा था पूनम वाले रोज़ भी,
सोचा कुछ सुस्ता लूँ पथ के मोड़ पर,
लेकिन हिम्मत बोली पत्नी की तरह,
मैं मालिश कर दूँगी तन के जोड़ पर,
तभी चाँद यों निकला मेघिल ओट से,
जैसे कोई श्याम-पटेलिन गाँव की,
दे चमकीली बेंदी अपने माथ पर
ऐसी रात मिली है मुझको पाँथ पर।
ऐसे गीत लिखे तो क्या गलती करी?
थके चरण में चुभने वाली कंकरी,
ठोकर खाकर एक तरफ़ को हो गई,
धरती मेरी जय की इस तस्वीर पर,
मां-ममता-सी, सुख के आंसू रो गई,
मिली पसीने भीगे तन से यों हवा।
जैसे स्वप्निल प्यार-नगर में, रूप ने,
हाथ रखा हो आकर मेरे हाथ पर
ऐसी रात मिली है मुझको पाँथ पर।
ऐसे गीत लिखे तो क्या गलती करी?
उपदेशों की झड़ी, लगाती ठोकरें,
मन-पोथी में लिखता हूँ उस ज्ञान का,
कलयुग के दाताओं सुनलो ध्यान से,
नहीं रखूंगा गलती के वरदान को,
मुझको ऐसी कृपा रूके तो डर नहीं।
ईश्वर से भी ऊँचा आसन कर्म का,
गर्व मुझे है उसके-अपने साथ पर
ऐसी रात मिली है मुझको पाँथ पर।
ऐसे गीत लिखे तो क्या गलती करी?