स्पेस-शटल की कॉकपिट / पंखुरी सिन्हा
जगमगाती,
जुगनुओं-सी,
सितारों-सी,
दूर के ग्रह नक्षत्रों-सी,
टेलिस्कोप के नज़ारों-सी,
सारे स्वप्निल लट्टूओं-सी,
स्पेस-शटल की कॉकपिट,
एक ख़ास किस्म के काँच के भीतर,
बहुत संभ्रांत रोशनियाँ,
बहुत संभ्रांत रंगों की,
तकनीक की उड़ानों की,
अन्वेषण की,
अनुसन्धान की,
और देखते हुए उन्हें अपने बहुत पुराने लैपटॉप पर,
मेरे टेलीविज़न के भी ले लिए जाने के बाद,
और पढ़ते हुए,
स्पेस एक्सप्लोरेशन की ख़बरें,
देशों की होड़,
पूँजी-निवेश की घोषणाएँ,
और इंतज़ार करते,
एक अदद नौकरी का,
जैसे सदियों से,
और ज़िन्दा रहते,
सिर्फ उधार पर,
और थामे होते,
दोनों हाथों से,
बस नौकरी मिल जाने की उम्मीद को,
और कहते नहीं कुछ भी,
तब तक,
जब तक,
एक नयी राजनितिक पार्टी का यूथ-विंग,
आयोजित नहीं करता,
एक धरना शहर के चौक पर,
और पुलिस आ रही होती,
टियर गैस छोड़ने।