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स्मरणीय भाव / श्रीधर पाठक

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वंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अभिमानी हों
बांधवता में बँधे परस्पर, परता के अज्ञानी हों
निंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज अज्ञानी हों
सब प्रकार पर-तंत्र, पराई प्रभुता के अभिमानी हों