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स्मारक / महादेवी वर्मा

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झूमते से सौरभ के साथ
लिये मिटते स्वप्नों का हार,
मधुर जो सोने का संगीत
जा रहा है जीवन के पार;

तुम्हीं अपने प्राणों में मौन
बाँध लेते उसकी झंकार।

काल की लहरों में अविराम
बुलबुले होते अन्तर्धान,
हाय उनका छोटा ऐश्वर्य
डूबता लेकर प्यासे प्राण;

समाहित हो जाती वह याद
हृदय में तेरे हे पाषाण!

पिघलती आँखों के संदेश
आँसुओं के वे पारावार,
भग्न आशाओं के अवशेष
जली अभिलाषाओं के क्षार;

मिलाकर उच्छवासों की तूलि
रंगाई है तूने तस्वीर!

गूँथ बिखरे सूखे अनुराग
बीन करके प्राणों के दान,
मिले रज में सपनों को ढूँढ
खोज कर वे भूले आह्वान;

अनोखे से माली निर्जीव
बनाई है आँसू की माल!

मिटा जिनको जाता है काल
अमिट करते हो उनकी याद,
डुबा देता जिनको तूफान
अमर कर देते हो वह साध;

मूक जो हो जाती है चाह
तुम्हीं उसका देते संदेश।

राख में सोने का साम्राज्य
शून्य में रखते हो संगीत,
धूल से लिखते हो इतिहास
बिन्दु में भरते हो वारीश;

तुम्हीं में रहता मूक वसंत
अरे सूखे फूलों के हास!