भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृतिक छाहरि मे गामक धाह / कुलानन्द मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाम सँ चलैत काल
माइक सिनेह आ बापक आशीर्वाद
किछुए दूर धरि पाछु लागल आयल
ठुट्ठा पीपर तरक ग्राम देवता
सकुशल यात्राक देलनि पासपोर्ट
मुदा अहाँक मौन निस्वास
कतोक प्रान्तन्प्रांतर केँ धंगैत
एहि महानगरक अकच्छ कर' बला गहमा-गहमियो मे
जमल प्रश्न जकाँ आगाँ ठाढ़ अछि
अहाँ जे हमरा साँसक भ' गेलि छी मलिकाइन
दूर वा लग रहितहुँ
अपन छाया मे रोमांचित
सदिखन सहगामिनी भेल छी
आँगनक तुलसीचौरा केँ दैत साँझ
अहाँक मनुसायल चित्र करैत अछि ट्रांसमिट
बाड़ीक काँच अनारक खटरस स्वाद
हमरा दाँत केँ एतहु क' दैछ कोत
आ भनसाघरक चुबैत चार सँ टपकैत पानि
हमरा दुमहलोक फाँट सँ झड़ि
हमरा ओछाओन मे एत्तहु क' दैछ गिल

चर्चा बहुतो बातक भ' सकैछ
गन्ध वा दुर्गन्धि पुरनुके प्रकृति धयने रहत
मुदा फूलक स्वांग रचने कागदक फूल
प्रायः किछु समय लगतैक
जे सभ केँ समाने भ' जाइ स्वीकार

प्रयास थोड़ नहि कयल अछि
जे सिनेहक एहि मोट गाथा मे
किछु अनुच्छेद हम दुहु सम्मिलिते जोड़ि दी
आ सम्मिलिते लिखि दी उपसंहार

कोइलिक तान सँ झौहरि
आ मज्जरक गन्ध सँ उदासी
जीवनक ऊसर धरती पर
अनन्त पसरल झौआक गाछ
रुसल बसन्त मानियो जाय
गेल बसन्त कदाचित आबियो जाय
मुदा पड़ायल बसन्त
खोंचाड़ल बसन्त
कतेक दिन लागल रहब अनेरे एना
बकाण्ड प्रत्याशा मे
समय बड्ड थोड़ छैक
ई तँ एकतरफे सभ केँ बुझले छैक।