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स्मृतिपोत / चंद्रभूषण
Kavita Kosh से
छूटे हुए लोग कभी नहीं मिलते
क़द-बुत में उनके मिलती हैं
सिर्फ़ उनकी निशानियाँ
कोई जुमला, कोई लहजा,
निगाह का कोई अजब पैंतरा,
जो सजग न रहने पर
अब भी चुभ जाता है
तुम सोचते हो, यह वही है,
जिसकी एक-एक जुंबिश पर
जीना-मरना होता था ?
मगर सोचो ज़रा,
क्या तुम ख़ुद भी वही हो,
एक-एक जुंबिश पर
जीने-मरने वाले ?
अच्छा हो कि छूटे हुए लोग
वापस कभी न मिलें
नहीं मिलेंगे तो रहेंगे हमेशा
समय के घावों से महफ़ूज
सफ़ेद दीवार पर टंगे
रंग-बिरंगे स्मृतिपोत में चलते हुए
सदा-सुखी, सदा-सुंदर, सदा-सत्य
देखने वाले को भी जब-तब
कुछ दूर अपने साथ ले जाते हुए,
जो उसके अब के होने को
कुछ कम बदरंग बनाता है ।