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स्मृतियाँ मुझ पर निगाह रखती हैं / टोमास ट्रान्सटोमर
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जून की एक सुबह
यह बहुत जल्दी है जागने के लिए और दुबारा सो जाने के
बहुत देर हो चुकी है
मुझे जाना ही होगा
हरियाली के बीच जो पूरी तरह भरी हुई है स्मृतियों से
स्मृतियाँ -
जो निगाहों से मेरा पीछा करती हैं
वे दिखाई नहीं
घुलमिल जाती हैं अपने पसमंजर में
गिरगिट की तरह
वे मेरे इतने पास हैं
कि चिड़ियों की बहरा कर देनेवाली चहचहाहट के बावजूद
मैं सुन सकता हूँ
उनकी साँसों की आवाज।
(अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य)