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स्मृतियाँ / दीपक जायसवाल
Kavita Kosh से
क्या होगा यदि हम भूल जाए
अपनी सारी स्मृतियाँ
शायद तब हम खण्डहर भी
नहीं रहेंगे
क्यूँकि वह भी जीते हैं
अपनी स्मृतियों में
हम जीवित हैं क्योंकि
हमारे पास यादे हैं
क्योंकि हम बना रहे हैं
स्मृतियाँ हर धड़कन के साथ
हर बार फेफड़े में आती जाती
हवा के साथ
मेरा घर मेरी माँ मेरे पिता
मेरा गाँव यह बारिश बचपन दोस्त
यह आकाश और मेरा बगीचा
और मेरी बेवफा प्रेमिका
मेरे भीतर जीवित रहते हैं
जैसे जीवित रहती है मछली
पानी के भीतर
जैसे जीवित रहता केंचुआ
गीली मिट्टी में
स्मृतियों में जीवित रहता हूँ मैं
शाहजहाँ मरा थोड़ी न है?
इतिहासकारों की आँखें नहीं होतीं
वे सुन नहीं सकते
वे हाथों पर बस गिनते हैं
कुछ गिनतियाँ
और कह देते हैं शाहजहाँ मर गयाS