स्मृतियों का गाँव / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
स्मृतियों का एक गाँव मुझमें बसता है
मेरे अंदर कहीं गहरे में
बिना भेद-भाव सभी साथ पलती हैं
मीठी, कडवी, ममस्पर्शी, भावुक, वन्दनीय
काल्पनिक, उत्तेजक, प्रेरणादायी, और दयनीय
मेरी यादों का अपना एक संसार है
उनकी अपनी एक जीवन शैली है।
बचपन से आजतक की जीवनयात्रा की
स्मृतियाँ इस गाँव में रहती हैं
मेरे जीवन के साथ इनका जीवन जुड़ा है
कुछ नयी स्मृतियाँ भी आकर बसती जाती हैं
उस गाँव में उनका बड़े ही सम्मान
और आदर के साथ स्वागत होता है।
मेरी उम्र का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
उनकी अपनी कोई उम्र नहीं होती
और वे उम्र की सीमा के परे हैं
शरीर का अंत हो जाने पर भी वे जीवित रहेंगी
अवचेतन मन की गहरायों में इनका निवास है
जीवन की सभी यादों का यहाँ लेखा-जोखा है।
मनः स्थिति के अनुसार वो उत्पन्न होती हैं
भूली-बिसरी यादों की एक शृंखला
किसी क्षण बचपन की यादों के साथ मिली
बड़ी ही सुखद अनुभूति रही।
अपने पैरों पर चलने की चेष्टा
विद्यालय के लिए जाना
माँ का वात्सल्य और पिता की सीख
दादा-दादी का वरदहस्त
भाइयों-बहनों के साथ रूठना और मनाना
सभी कुछ जीवंत हो गया
मेरे जीवन की स्मृतियाँ
चलचित्र की तरह चलने लगती हैं
मुझे जब भी समय मिलता है
मैं स्मृतियों के गाँव में अवश्य जाता हूँ
सभी स्मृतियाँ आकर लिपट जाती हैं
वे मुझे सदैव कुछ न कुछ सिखाती हैं।
एक दिन एक स्मृति ने मुझसे कहा
हम तो तुम्हारे जीवन की मात्र स्मृतियाँ भर हैं
और इतना पर्याप्त है हमारे लिए
इससे अधिक की चाह भी न रही हमारी
बस तुम भी हमारे बीच कोई अंतर न करना
किसी प्रकार के उँच-नीच का भेद न डालना।
क्योंकि तुम्हारी सोच में विभाजन है
यह हमारा अनुभव है तुम्हारे जीवन के साथ
इस दुनिया को तुमने
अच्छे और बुरे में विभक्त कर दिया है
हमारे साथ ऐसा न करना
हममें फूट न डालना
जिससे हम सदा प्रेम से रह सकें।
मुझे बड़ी ग्लानि का आभास हुआ
मैं वहाँ से चलने लगा
वे कहने लगीं- 'प्रिय ! हम तुम्हारे अपने हैं
आते रहा करो अच्छा लगता है हम सबको
पर तुम तो अपने गतिमान दैनिक जीवन में
बहुत व्यस्त हो चुके हो
अतः स्वयं से भी मिल नहीं पाते
तो फिर हम तो मात्र स्मृतियाँ ही हैं
पर तुम्हारी अपनी और सदा साथ रहेंगीं
चिर प्रतीक्षित तुम्हारे लिए।