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स्मृतियों का स्पर्श / पुष्पिता
Kavita Kosh से
अकेलापन पतझर की तरह
उड़ता और फड़फड़ाता है।
तुम्हारी तस्वीर से
उतारता है स्मृतियों का स्पर्श
देह मुलायम होने लगती है
तुम्हारी चाहत की तरह।
तुम्हारे शब्द
सपनों की आँखें हैं
जिनसे रचती हूँ भविष्य।
तुम्हारी हथेलियों ने
छोड़ा है भावी रेखाओं का छापा
जैसे मेरे हृदय ने छोड़ा है
अपनेपन का अविस्मरणीय स्मृति-चित्र
तुम्हारे प्राणों में मैं
अपने पूर्ण को देखती हूँ
तुम्हारी साँसों से
लेना चाहती हूँ साँसों की शक्ति।
मन-गर्भ की दीवारों में
लिखा है तुम्हारा नाम
रक्त में सान रहा है जो
तुम्हारे प्रणय का रस-रंग-गंध।