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स्मृतियों से ओझल / अर्पिता राठौर
Kavita Kosh से
					
										
					
					मैंने 
पारिजात को 
खिलते देखा है
इतना सुन्दर 
इतना सुन्दर
इतना सुन्दर खिलते देखा है !
कि
अब
ओझल हो चुका है 
स्मृतियों से ही…।
 
	
	

