भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृतिहीन / नीलोत्पल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं बैठा हूं छत पर
स्मृतिहीन

नहीं नक्षत्रों की बरसती रोशनियां
उजाले और अंधेरे के मुखौटे नहीं
भीड़ नहीं, दखल नहीं
यंत्रणा, संताप नहीं

मैं बैठा हूं खामोश

मैं नहीं चाहता आना
जब सड़कों से गुज़र रही हां टोलियां
वहां सिर्फ़ आश्वासन हैं

अगर तुम मुझे नहीं देख रहे हो तो
मैं ख़ुश हूं

मैं ख़ुश हूं
क्योंकि मैं हर बार वह नहीं हो सकता
जो तुम मुझे दिखाना चाहते हो

आज हम विकल्प और उम्मीद की
बात नहीं करेंगे

अगर ये सड़कें किसी तरह खत्म हां
तो हम अपने रास्ते पर होंगे

क्या तुम मुझे अकेला छोड़ोगे
मैं लौटना चाहता हूं
अपनी याददाश्त के साथ