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स्मृति-घटिका - 2 / विमलेश शर्मा

वो शाम रोशन थी
अपने हिस्से का उजास उसे गोद दे

उसे अपने समीप खींच
उसने हौले से कुछ कहा था

संकेतों की उस भाषा को
जब समझा गया
वहाँ लिखा था

एक विदा गीत!