स्मृति-जाल / राजकमल चौधरी
अहाँ पड़इ छी मोन
हृदय के जागल व्रण पर पसरि जाइए नोन
मोन पड़इए
गोबरसँ नीपल आँगनमे पूब-कोन पर तुलसी-चौरा
देबालपर चित्रित-अंकित नैना-जोगिन, आतिल-पातिल, शिव-गौरा
अहिपन के सतरंग-चित्रपर राखल
आमक पल्लव-संयुत घैल
पिठारसँ रंजित-सज्जित उज्जर पीढ़ी
(प्रणय देश जएबा हेतुक अनुपम सीढ़ी)
बरियाती-सरियातीमे हास्य, पिहकारी शास्त्रार्थ
सार गारि देबामे महापार्थ
गीत-नाद, फुसिए प्रमाद, सासुक समाद
विद्यापति जगन्नाथ जयदेवक पद
जीवनक प्रति क्षण उन्मद-उन्मद
स्पष्ट-स्वरेँ वेद-ध्वनि, मन्त्रोच्चार, उचिती-मिनती
‘त्रटि सभ क्षमल जाओ’ श्वसुरक बिनती...
मोन पड़इए
बरखासँ भोजल भीतक गृहमे जरइत लघुदीप विकल
लाज-घामसँ तीतल-भीजल अंग-अंग अति शीतल
मूनल सितुआ सन आँखि
पलक अलकमे ओझरायल, फड़फड़ करइत पाँखीक पाँखि
लाजसँ भरल, भीतिसँ डरल-डरल सन, उत्सुक, उन्मन
ननकिलाट के दसगज्जी ललका साड़ीमे नुकायल नवयौवन
आत्मसमर्पण, अनुनय-विनिमय, मान-
‘‘जा कोना मिझा गेल दीपक, डर लगइए, प्रान!’’
चिर-मंगलमय ओ राति सोहाओन
टाका गहना की, देने छलउँ हम अपन जिनगी मुँह-बजाओन
एहिना बहुतो किछु मोन पड़इए
मोनक जागल व्रण पर नोन पड़इए...
कतेक सिनेहक घटना, गप-शप, हास
जीवन निेहसँ, इजोतसँ घर-आँगनमे होइ छल प्रकाश
मुदा, आब त’ बचल मात्र ई स्मृतिक दाह
दरिद्रता महरानीसँ मरइ छी नितप्रति निबाह, नितप्रति निबाह
करइ छी सभ किछ सुडाह
अहाँक स्मृतिकेँ नयनक आगाँ साकार करी
पुनः स्वप्नसँ एक्को छन जीवन प्राणक शृंगार करी
अछि तकर ते आइ उपाय
कलकत्तामे बैसल छी निरुपाय
मोन होइए, गामे भागी भावुकताक वेगमे
मात्र एगारह आना बाँचल अछि मनीबेगमे
आ, दरभँगा के भाड़ा रेलक अछि पूर्ण एगारह टाका
तइँ पयर फँसल अछि अभाव के पाँका...