भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृति-पत्र / हालीना पोस्वियातोव्स्का / अशोक पाण्डे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर तुम मर जाओगे

तो मैं नहीं पहनूँगी हलकी
बैंगनी पोशाक
फुसफुसाती हवाओं से भरे रिबनों से बन्धी
रंगीन कोई भी चीज़ नहीं
कुछ भी नहीं

घोड़ागाड़ी पहुँच जाएगी –
पहुँचेगी ही
घोड़ागाड़ी चली जाएगी –
जाएगी ही
मैं खिड़की से लगी खड़ी रहूँगी, देखती रहूँगी

हाथ हिलाऊँगी
रूमाल लहराऊँगी

उस खिड़की पर खड़ी

अकेली कहूँगी :
“अलविदा”

और भीषण मई की
गर्मी में
गर्म घास पर लेट कर
मैं अपने हाथों से
छुऊँगी तुम्हारे बाल
अपने होठों से सहलाऊँगी
मधुमक्खियों के रोओं को
जिसका डंक उतना ही सुन्दर
जैसे तुम्हारी मुस्कान
जैसे गोधूलि का समय
उस समय वह
सोना-चान्दी होगी

या शायद सुनहरी और सिर्फ़ लाल

जो ढिठाई से घास के कान में फुसफुसाती जाती है
प्रेम, प्रेम
वह उठने नहीं देगी मुझे

और ख़ुद चल देगी
मेरे अभिशप्त ख़ाली घर की ओर

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे