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स्मृति कविता : कथाकार रघुनन्दन त्रिवेदी के लिए / विनोद विट्ठल

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1.

ग़लत है मृत्यु
अगर निरेचन के लिए भी गए

कुछ भी तो नहीं था जिसे साफ़ किया जाता

2.

गुण बताते थे जैसे नीम के
नीम्बू और नीन्द के
चींटी की सक्रियता और चिड़ियों की जाग के

पर इनके लिए ज़रूरी है इन्हीं का होना
जैसे आपका

3.

आपकी टोकों से ज़्यादा है हमारे पास टुच्चापन
नसीहतों से ज़्यादा है लापरवाहियाँ
विवेक से ज़्यादा हैं ग़लतियाँ

लौट आओ

4.

हरे रँग का बजाज कब स्कूटर : आर एन क्यू 3317
पुष्प क़ैफ़े
मोहन की थड़ी
नैनी बाई के मन्दिर की सीढ़ियाँ

तालाब
क़िले का रास्ता
सभी कुछ है

सिवा उस जँगल के
जिसमें हम खो गए हैं

5.

सोचते हो कभी आप :
हमेशा के लिए टूटे चान्द को देखकर
क्या सोचते हैं हम


6.

तारा बनकर
किस दिशा में उगते हो
सन्नाटे के कोरस में
कब रिकॉर्ड करते हो हमारी आवाज़
किन तनों पर लगा दिए हैं
कैमरे

आकाश की छत से झाँकते हुए
कितने बड़े नज़र आते हैं हम
बताओ, रघुजी !

7.

कैसी होती है वहाँ की जाग
अब जाते हो अलसुबह घूमने
देखते हो उगता सूरज और उसे विदा भी करते हो
कैसा दीखता है चान्द पास से
क्या वैसा ही स्वाद वहाँ भी है करेले का
अब भी लेते हो वही हीपर सल्फ़ गले की ख़राश में
बताते हुए लोगों को वहाँ नुस्ख़े

झाँको और देखो
हमें भी ज़रूरत है नुस्ख़ों की
कि जी सकें हम बिना आपके

8.

शर्मिन्दा हो सकते हैं अपने टुच्चेपन पर
रो सकते हैं अभावों पर
बस, ख़ुश नहीं हो सकते
बिना आपकी तस्दीक़ के

9.

कुछ भी पहले जैसा नहीं है
हम बार-बार लौटते हैं
10 जुलाई, 2004 के पहले वाले कैलेण्डर में :
तलाशते हुए
हमारे शहर की भावी लोककथा
बुदबुदाते हुए
यह ट्रेजडी क्यों हुई
जानते हुए

वह लड़की अभी ज़िन्दा है
स्वीकारते हुए
इन्द्रजाल

10.

नहीं खेली ताश
नहीं देखा शह और मात का खेल
चुप रहा शैलेन्द्र के गीतों और लता की आवाज़ पर
टी-शर्ट नहीं ख़रीदा
होमियोपैथी की दवाई और सुदर्शन घनवटी भी

रिस जाती हैं आँखें
कुछ भी अच्छा लिखकर

बारहखड़ी पूरी कराने से पहले
क्यूँ बन्द करवा दी पढ़ाई ।