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स्मृति गंध सूत्र / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बीच में है तो हुआ करें
पहाड़ या नहीं या खंदक
या और भी कुछ-कोई
दुनिया का छोटी या बड़ी होना
अर्थ रखते हुए भी है अर्थहीन
हमारे लिए
इस छोर मैं
उस छोर तुम
और सांस ले रहे सटे-सटे !
साथ-साथ बांधे है हमें जकड़कर
स्मृति गंध-सूत्र !