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स्मृति / संगीता गुप्ता
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झूमते पेड़;
इठलाते पत्ते
कोयल की कूक
गिलहरी का फुदकना
लगता है सब
कितना निरर्थक
जीने की ललक
नहीं जगातीं
गुलमोहर के
लाल फूलों से
लदी - फदी डालियां
नहीं उमगता मन
देख
अमलतास के
पीले फूलों को
एक सघन उदासी
जमती जाती है
परत - दर - परत
वह अपने भीतर
लौटती है
बहुत गहरे
जहॉं एक
तरल स्पर्ष की गरमाहट
शेष है