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स्यात लिखै जीसा / नीरज दइया

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म्हैं कोटगेट सूं
अलेखूं वळा निकळ्यो
जीसा ई निकळ्या हा
पण म्हां नीं लिखी कोई कविता-
कोटगेट री ।
कविता में फगत
कोटगेट कोटगेट रो नांव आवण सूं
नीं बणै कविता-
कोटगेट री ।
किणी कवि सूं
कोटगेट आज तांई नीं बोल्यो-
लिखण सारू कविता-
कोटगेट री ।
जीसा रै लारै
बांटती बगत पातळां
टाळी ही पातळ-
कोटगेट री ।

बीकानेर रै च्यारूं दरवाजां सागै
अबै बंतळ करैला जीसा
बामण नै दियोड़ा
पोथी-पानड़ा अर पेन सूं
स्यात कविता लिखैला जीसा !