भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्याम! मेरी लज्जा हाथ तिहारे / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
राग भैरवी, कहरवा 14.8.1974
स्याम! मेरी लज्जा हाथ तिहारे।
जब-जब अड़ी पड़ी भक्तन पै, तुम ही काज सँवारे॥
तुम्हरे बल यह जोग लियो मैं, धन-जन सभी विसारे।
पै या हृदय-सदन में प्रीतम! अबहुँ न आप पधारे॥1॥
कहा लाभ यह वेश बनायो, जो तुम मिलहु न प्यारे!
बिना देव देवालय जैसो त्यों ये प्रान हमारे॥2॥
सदा बसहु प्रानन ही में तुम प्रीतम! प्रान हमारे।
तुम बिनु स्वास लेत हूँ ये तनु धौकनि सरिस विचारे॥3॥
बहुत भई अब गई वयस हूँ, पौरुष सबही हारे।
टूटे और सबहि अवलम्बन, तुम ही एक सहारे॥4॥
अब हूँ जो अपनावहु प्रीतम! सुधरहिं कारज सारे।
लाज रहे याहूँ की अन्तहुँ आप मिलहु जो प्यारे॥5॥
बसहु सदा मो हृदय-भवन में, नयन न और निहारे।
सबमें झाँकी होय तिहारी, तन-मन सदा तिहारे॥6॥