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स्याम! मैं सब विधि तेरो-तरो / स्वामी सनातनदेव

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राग सारंग, तीन ताल 22.8.1974

स्याम! मैं सब विधि तेरो-तेरो।
तेरी कृपा-कोर ही प्यारे! केवल सम्बल मेरो॥
सब कछु दियो, न लियो स्याम! कछु, मोपै कछू न मेरो।
अनुदिन बढ़त व्याजमें रति रस, कैसे होय निबेरो<ref>ऋण से छुटकारा</ref>॥1॥
सदा-सदा को रिनिया ही हो, मंगन तदपि बड़ेरो।
माँगत-माँगत गये जनम बहु, रह्यौ यही व्रत मेरो॥2॥
अब लौं भयो न उरिन, न आगे कोउ भरोसो मेरो।
यासों लेहु स्याम! मोहोकों, करहु आपुनो चेरो॥3॥
तेरो चेरो रहों सदा, तुव चरनन करों बसेरो।
पायँ पलोटि करों परिचरिया, रहै न कोउ बखेरो॥4॥
‘मेरो-तेरो’ रहै न अब कहुँ, सब कछु भासै तेरो।
मो पै मेरो रहै न दूजो, केवल तू ही मेरो॥5॥

शब्दार्थ
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